Effects of Hath yogic Practice on human body systems, Assignment work For M.A yoga 2nd semester in https://www.dsvv.ac.in Haridwar. for more visit on https://www.omvishwajit.blogspot.in
1. प्राणायाम का शारीररक तंत्रों पर प्रभाव
Assignment Work
( Paper- 1, हठ योग के सिद्ांत )
वर्ष – 2016 (2nd sem.)
निर्देशक –
डॉ.िुनील कु मार
िहायक प्रोफ़े िर
योग एवं स्वास््य सवभाग देव िंस्कृ सत सव.सव.
हररद्वार (उतराखंड)
प्रस्तुत कततष-
मोसनका बंिल
एम.ए. (मानव चेतना एवं योग
सवज्ञान) -( सद्वतीय िेमस्टर)
देव िंस्कृ सत सवश्वसवद्यालय
गायत्री कु ञ्ज- शांसतकुं ज , हररद्वार ( उत्तराखंड ) -२४९४११
2. 1
प्राणायाम का शारीररक तंत्रों पर प्रभाव
सवषय िूची
अध्यतय -१
अध्ययन की आवश्यकता
अध्यतय -२
प्राणायाम परिचय अर्थ –परिभाषा
पूवथ तैयािी एवं वववि
प्राणायाम के प्रकाि
हठ प्रदीीवपका एवं ेेिं ंंवहता के प्राणायाम
अध्यतय -३
शािीरिक तंत्र का परिचय
मुख्य शािीिक तंत्र
अध्यतय -४
प्राणायाम का वियाववज्ञान (Physiology of pranayama)
प्राणायाम का शािीरिक तंत्रो पि प्रभाव
अध्यतय - ५
वनष्कषथ
ंन्दीभथ ंूची
3. 2
अध्यतय -१
अध्ययन की आवश्यकता
प्राणायाम योगाभ्यां का अत्यंत आवश्यक अंग है शुविकिण औि ंमत्व के द्वािा विनाथिि प्राण शवि पि
वनयंत्रण पाने का ववज्ञान ही प्राणायाम है! आिकल प्राणायाम का अर्थ केवल श्वां का वनयंत्रण औि अनुशिण मात्र हो
गया है इं तिह प्राणायाम परिपूणथ ंहि अर्थ ंे ववमुख वैज्ञावनक प्रस्तुवत औि आिकल की ंंशोिन का ववश्लेषण है |
प्राणायाम शब्दी ंे ही िैंा की पता चलता है प्राण – अर्ाथत िीवनी शवि का “आयाम” अर्ाथत ववस्ताि या वनयंत्रण की
प्रविया को इंवगत किता है | तर्ा यह ंब िानते है यह ंम्पूणथ िीवन प्राण शवि का ही खेल है, ंभी में प्राण ववद्यमान
होने के कािण उंे िािण किने वाला होने ंे ंभी “प्राणी” कहे िाते है | प्राण के न िहने ंे वनष्प्राण होने ंे अछा ा खाशा
स्वस्र् शिीि भी बेकाि एवं भाि तुल्य हो िाता हैविंका यर्ा शीघ्र उवचत ंंस्काि किने पड़ते है | इं प्रकाि िीवन िािण
वकये िहने के वलए प्राण का होना अत्यंत आवश्यक एवं अवनवायथ है , तर्ा स्वस्र् ंबल एवं ंफल िीवन के वलए ंमस्त
प्राण उिाथ का ंंतुवलत िहना आवश्यक है ! ऐंा नहीं होने पि ही शिीि िोग ग्रस्त हो कि दीुुःख का कािण बनता है |शिीि
को ंंचावलत व स्वस्र् िखने में प्राण की महत्व पूणथ भूवमका होती है, इवंवलये प्राण की न्यूनता होने कायथ क्षमता में कमी
एवं नाना प्रकाि के िोगों की उत्पवत होती है | ये िोग शािीरिक – मानवंक , ंामाविक ंामंिस्य , भावनात्मक आवदी ंे
ंम्बंवित हो ंकते है | िैंे –अस्र्मा, ाईवबविि, अपच , कमिोिी , वचंता , तनाव , अवनद्रा , भय आवदी !
आिुवनक भौवतकवादीी भागदीौड़ भिी व्यस्त िीवन शैली के कािण मनुष्य कई प्रकाि के िोगों ंे पीवड़त हो दीुुःख को पा
िहेविंमे , श्वंन तंत्र ंे ंम्बंवित िोग िैंे – अस्र्मा , ब्रोंकई आवदी प्रमुख हैइंके आलावा वववभन्न प्रकाि के मानवंक
िोगों ंे ग्रस्त है- िैंे – वचंता , तनाव , भय , िोि , अवंादी आवदी | विंके ंमुवचत ंमािान के वलए योग ववज्ञानं के
अंतगथत ववणथत प्राणायाम का अभ्यां बहुत चमत्कािी प्रभाव उत्त्पन्न किने वाला वंि हो िहेहै !इंंे ना केवल शािीरिक
मानवंक िोगों शमन होता है विन प्राण शवि का ववकां होने ंे कायथ कुशलता, िीविता , िोग ििा ंे मुि दीीेथ ंुख
शांवत पूणथ िीवन की प्रावि होती है |
अत: आिुवनक वववभन्न प्रकाि के बााते शािीरिक मानवंक िोगों के वनदीान एवं स्वस्र् , ंबल दीीेथ ंुख शांवत पूणथ
िीवन को िािण किते हुए , अपने पिम लक्ष्य ( पिम पुरुषार्थ –आत्मवस्र्वत )मोक्ष को प्राि ि योग के ंवोछाच अवस्र्ा
ंमावि की वंवि के वलए भी प्राणायाम का वैज्ञावनक स्वरुप पिवत , वियाववज्ञान एवं शािीरिक तंत्रों पि उंके पड़ने वाले
िैववक प्रभाव का गहन वैज्ञावनक अध्ययन की आवश्यकता है |
4. 3
अध्यतय -२
प्राणायाम परिचय अर्थ –परिभाषा,
प्राणायाम के प्रकाि
हठ प्रदीीवपका एवं ेेिं ंंवहता के प्राणायाम
पातंिल योग ंूत्र में प्राणायाम को एक ऐंा ववज्ञान माना गया है िो श्वां के ंंयोिनं ंे प्राण पि औि ंार् ही मान पि
वनयंत्रण पाने की वववि प्रदीान किता है प्राणायाम अष्ांग योग का चौर्ा अंग है ! प्राणायाम का अर्थ है – प्राण शवि का
वनयंत्रण प्रलंबन दीीेथता ववस्ताि औि व्यापकता !
प्राणायाम शब्दी प्राण व आयाम इन दीो शब्दीों ंे बना है , प्राण ये हमािी िीवनी शवि (वाईिल फ़ोंथ/लाइफ) है विंके
कािण मन ंे लेकि ंभी इवन्द्रयों को कायथ किने वक शवि (प्रेिणा) वमलती है ! िि का ववंिण श्वंन आवदी कायथ इंी
प्राण शवि के कािण चलते है आयाम का अर्थ है प्राण शवि पि ऐवछा क वनयंत्रण लाना औि उंका ववस्ताि किना !
स्वाभाववक श्वंन यद्यवप प्राण शवि के वनयंत्रण में होता है हम उं पि कु ह तक ऐवछा क वनयंत्रण ला ंकते है ! श्वंन
का एक औि प्राण ंे औि दीूंिी औि मन (वचत्त) के ंार् ंम्बन्ि है ! प्राण शवि को वनयंवत्रत किते है तब मन या वचत्त
(वृवत्तयााँ ) पि भी अपने आप वनयंत्रण हो िाता है !
“तस्मिन सस्तश्वासप्रश्वासयोर्गस्त स्िच्छेद: प्राणायाि:!” –प.यो.-२/४९
अर्थ – आंन में वस्र्िता का अभ्यां हो िाने पि श्वां – प्रश्वां की गवत का ववछा ेदी किना (िोकना ) ही प्राणायाम है !
आदौ मथानि तथा कालं स्िताहारं तथा परि |
नाडीशुस्धंश्च तत: पश्चात्प्प्राणायािं च साधयेत || घे.स.५/२ ||
अर्थ- प्रर्म , स्र्ान औि कल का चुनाव वमताहाि औि ना ी शुवि किे इंके पश्चात् प्राणायाम का अभ्यां किना
चावहए !
पूवथ तैयािी व वववि-
“आदीौ स्र्ानं तर्ा कालं वमताहािं तर्ा पिम |
नाड़ीशुवि तत: पश्चात् प्राणायाम च ंाियेत || ेे.ं.५/२||”
अर्ाथत – प्राणायाम के अभ्यां आिंभ किने ंे पूवथ वनम्नवलवखत तत्वों को ंुवनवश्चत कि लेना चावहए –
5. 4
1. उपयुि स्र्ान – ५/५-७ ेे.ं. में वणथन |
2. उपयुि काल– वंंत एवं शिदी ऋतु –५/९,१५ ेे.ं. में वणथन|
3. वमताहाि – ५५/१६-२२ ेे.ं. में वणथन |
4. ना ी शुवि -५/३४-४४ ेे.ं. में वणथन |
हठ प्रदीीवपका के प्राणायाम-
सुयगभेदश्च उज्जायी स्शतकारी शीतली तथा |
भ्रस्िका भ्रािरी ि्च्छाग प्लािनी चाष्टकु म्भ्का: ||ह.प्र.२/४४||
अर्ाथत - ंुयथभेदीी , उज्िायी , शीतली ,शीतकािी, भ्रविका, भ्रामिी , मूछा ाथ औि प्लावनी ये आठ कुम्भक (प्राणायाम ) है |
ेेिं ंंवहता के प्राणायाम
सस्हत: स्यगभेदाश्च उज्जायी शीतली तथा |
भ्रस्िका भ्रािरी ि्च्छाग के िली चाष्टकु म्भभका:||घे.स.५/४६||
ना ी वशवि को वंि किके एक वस्र्ि आंन में बैठ िाना है औि प्राणायाम के वलय तैयाि होना है !
प्राणायाम के आठ भेदी है – ंवहत , ंुयथभेदी , उज्ियी , शीतली , भ्रविका, भ्रामिी , मूछा थ औि के वली !
6. 5
प्राणायाि हठ प्रदीस्पका घेरंड संस्हता
||ह.प्र.२/४४||
||ेे.ं.५/४६||
ंुयथभेदीश्च उज्िायी वशतकािी शीतली तर्ा |
भ्रविका भ्रामिी मूछा ाथ प्लावनी चाष्कुम्भका : ||
ंवहत: ंूयथभेदीाश्च उज्िायी शीतली तर्ा |
भ्रविका भ्रामिी मूछा ाथ के वली चाष्कुम्भका:||
१.ंूयथभेदीी
(२/४८-५०)
(५/५८-६९)
दीावहने नर्ुने ंे वायु को खीच कि अन्दीि िोके वफि
बाए बाये नर्ुने बहाि वनकल दीे !
ंूयथ ना ी ंे पूिक किे वफि िालंिि बंि एवं कुम्भक औि िब तक पााँव ंे के श
पयंत पंीना न आ िाय तब तक तब तक कुम्भक द्वािा वायु िािण वकये िहे !
२.उज्िायी
(२/५०-५३)
(५/70-७३)
मुह को बंदी किके दीोनों नर्ुनों ंे वायु को आवाि के ंार्
अन्दीि ले विंंे कं ठ ंे ह्रदीय तक उंके स्पशथ अनुभव हो |
कुम्भक किते हुए बाए नर्ुने (इ ा ) ंे वनकल दीे |
दीोनो नावंकाओ ंे पुिक किते हुए श्वां को अन्दीि खीचना है औि
वायु को मुह में ही िखना है , कं ठ को ंंकुवचत कि ंूक्षम ध्ववन
उत्त्पन्न किते हुए ह्रदीय एवं गले ंे वायु को खीचना है !इं वायु का
योग पूिक के द्वािा वखची गयी वायु ंे किना है !
३.शीतकािी
(२/५४-५६)
सस्हत
(५/४७-५७)
ह.प्र.२/७१-
७२
मुख ंेशी-शीकीआवािके
ंार् पूिक किे औि िेचक
के वल नावंका ंे किे !
जब प्राणायाम रेचक और
पूरक के साथ ककया जाय तब
सकित कुम्भक िोता िै!
१. सर्भग - बीि मन्त्र का प्रयोग
ंुखांन में उत्ति की औि मुख कि बैठे पूिक(ििोगुण ब्रह्मा “अं” बीि16 बाि िप )- उ ्व यान बंि
, ंतोगुणी कृष्ण “उ”बीि 64मात्र कुम्भक, तमोगुणी शुक्ल वशव िी “मं” बीि का िाप किते हुए
िेचक | तजजनी मध्यमा का प्रयोग न करे !
२. स्नर्भग – बीि मन्त्र िवहत
पूिक-कुम्भक,िेचक प्राणायाम की १-१०० तक की मात्राए होती है ! उत्तम- 20 मात्राए , माध्यम -
१६ एवं अिम -12 मत्राए !
4.शीतली
(२/५७-५८)
(५/७४-७५)
िीभ को दीोनों औिंे मोड़कि वायुको अन्दीिखीचकि कुम्भक
का अभ्यां किे !पश्चात िीिे – िीिे नावंका ंे िेचक किे |
विह्वा के द्वािा वायु को खीच कि उदीि में भिे , वफि कु ंमय तक
कुम्भक कि दीोनों नावंका ंे वनकल दीे !
५.भ्रविका
(२/५९-६७)
(५/७६-७८)
पद्मांन में वस्र्त हो ,मुह को बंदी किके वायु को र्ोड़े आवाि के ंार्
नावंका ंे ोड़े विंंे वायु स्पशथ का अनुभव ह्रदीय कं ठ औि कपाल
पयंत हो , वफि तेि आवाि के ंार् पूरित किे वफि ोड़े| बाि- बाि पूिक
िेचक की विया किे !
लोहाि के िौकनी के ंमान नावंका द्वािा वायु ंे उदीाि
को पूरित किे औि उदीि में ही िीिे िीिे चलाये इं प्रकाि
20 बाि किके कुम्भक किे वफि िौकनी ंे वायु वनकलने
के ंामान नावंका ंे वायु वनकल दीे !
६.भ्रामिी
(२/६८)
(५/७९-८४)
वेग ंे भ्रमि गुंिाि के ंामान आवाि
किते हुए पूिक किे वफि गुंिन के
ंार् ही िीिे – िीिे िेचक किे !
कोलाहल िवहत एकांत में दीोनों हार्ो के तिथनी अंगुवलयों ंे दीोनों कानो को बंदी किके पूिक
कुम्भक किे ! इंमे दीाए कान में अनेक प्रकाि की ध्ववनयां ंुनाई दीेती है ! पहले झींगुि वफि
बंशी, वफि मेे , वफि बािे , वफि भौिे का गुंिन , ेंिा , े ्याल , तुिही , भेिी , मृदींग ,
दीुदींभी आवदी का नादी ंुनाई दीेता है !
७.मूछा ाथ
(२/६९)
(५/८५)
पहले पूिक किे वफि िालंिि बंि लगाये तत्पश्चात िीिे – िीिे
वायु का िेचक किे !
ंुख पूवथक पूवोि कुम्भक को किके , मान को ववषयो ंे हिा कि
आज्ञा चि में लगाये औि इं पद्म में ववद्यमान पिमात्मा में लींन
कि दीे !
८.प्लावनी
(७०-७१)
के िली
(५/८६-९८)
२/७१-७२
श्वां नवलका द्वािा उदीाि को पयाथि
मात्रा वायु ंे पूिी तिह भि ले !
िेचक – पूिक के वबना अपने आप
िो वायु का िािण होता है , वे के वल
कुम्भक है!
पूिक विया के ंार् हि िीव की आत्मा “ंो” एवं िेचक के ंार् “हं” मन्त्र का िप किती
है !२४ ेंिे में २१६०० श्वां लेते है ! इंे हंंो अर्वा ंोSहं” अिपा गायत्री कहते है !
पूिक के ंमय मूलािाि ंे ऊपि चढाते हुए अनाहत चि ंे पाि कि नावंका तक पहुचते
हुए िेचक के ंमय श्वां की चेतना कावंका की अग्र भाग ंे वनचे मूलािाि की औि िा
िही है ! इंी पि ध्यान केवन्द्रत किे!
7. 6
अध्यतय -३
शारीररक तंत्र का पररचय-
मानव एक बहुकोवशकीय प्राणी है , िो मूलतुः अंंख्य कोवशकाओंंे वनवमथत होते है | इन कोवशकाओंंे उत्तको
का तर्ा उत्तको ंे अंगो का औि अंगो ंे वववभन्न तंत्रों (िैंे – श्वंन तंत्र , पाचन तंत्र, पेशीय तंत्र आवदी|) का अंतत: इन तंत्रों के
ंवम्मलन ंामंिस्य ंे मानवीय शिीि वनवमथत होते है ! विनके ंभी कायथ इन्ही तंत्रों के कु शल ंामंिस्य पूणथ ंंचालन व वनयंत्रण
ंे ंंपन्न होते िहते है | ये शािीरिक तंत्र पिस्पि एक दीुंिे के पूिक व अवभन्न है ! स्वस्र् , ंबल ,ंुख –शांवत पूणथ , दीीेथ िीवन
के वलए इन ंभी तंत्रों का स्वस्र् , ंक्षम व ंामंिस्य पूणथ वनिंति वियाशील होना आवश्यक है |
मुख्य शारीरक तंत्र
मानव शिीि कई मुख्य तंत्रों ंे वमलकि वनवमथत होते है विनके ंामूवहक पिस्पि ंामंिस्य पूणथ विया ंे ंभी आवश्यक कायों
का ंंपादीन औि िीवन िािण वकये िहना ंंभव हो पाता है ! ये मुख्य तंत्र वनम्नवलवखत है –
oकं कालीय तंत्र – शिीि वनमाथण को आिाि एवं आकाि प्रदीान किता है |मुख्यत:२०६ अवस्र्यााँ होते है |
oपेशीय तंत्र –शिीि को गवत किने की शवि प्रदीान किती है | ६०० कं कालीय पेशी|
oपाचन तंत्र – ग्रहण वकये गए भोिन को यांवत्रक – िांायवनक प्रवियायों द्वािा अत्यंत
ंूक्ष्म कणों में ववभािन औि अवशोषण !
oश्विन तंत्र – िीवन के वलए अवनवायथ आक्ंीिन को ग्रहण औि काबथन
ाईआक्ंाई को बाहि वनकालने की विया – अन्तुः व बाह्य श्वंन का ंञ्चालन |
कोसशका
उत्तक
अंग
तंत्र
शरीर
8. 7
oरक्त पररिंचरण तंत्र - िि ,आक्ंीिन , पोषक तत्त्व आवदी का ंमस्त शिीि के कोवशकाओ तक पहुचना व वहां
के व्यर्थ पदीार्थ को लाकि बाहि वनष्कावंत किने की व्यवस्र्ा !
oउत्िजजन तंत्र – वज्यथ पदीार्ो का शिीि ंे वनष्कावंत किना !
oअन्तः स्रावी तंत्र – तंवत्रका तंत्र के ंार् वमलकि शािीि के वववभन्न वियायों का वनयमन किता है |
oतंसत्रका तंत्र – शिीि की तर्ा उंके वववभन्न भागो व अंगो की ंमस्त वियायों का वनयंत्रण , वनयमन तर्ा ंमन्वयन
किता है!
oअच्छादीय तंत्र – त्वचा, नाख़ून , बाल आवदी |
oलासिकीय िंस्थान- िोग प्रवतिोिक कायथ ंम्पादीन लवंका द्रव्य के द्वािा |
oप्रजनन िंस्थान- वंशवृवि किना औि अपने वंश िम को शाश्वत बनाये िखने की प्रविया |
अध्यतय -४
प्राणायाम का वियाववज्ञान (Physiology of pranayama)
तंत्रिका
9. 8
प्राणायाम के अभ्यां के वववि को ध्यान पूवथक ंमझने पि स्पष् हो िाता है है की यह एक गहन वैज्ञावनक अभ्यां की
पिवत है विंका बहुत ही गहिा एवं व्यापक प्रभाव मानव शिीि के वववभन्न तंत्रों पि पड़ता है , विंके विया ववज्ञान
वनम्नवलवखत रूप ंे ंमझ ंकते है –
प्राणायाम अभ्यां के चिण एवं कािको का प्रभाव –
आंन – चिाई , कुश आवदी – शािीरिक िैव ववद्युत को ििती में िाकि नष् होने ंे बचाकि उध्वथ वदीशा प्रदीान
किता है |
ध्यानात्मक आंन- वस्र्ि शािीरिक अवस्र्ा प्रदीान किना विंंे एकाग्रता पूणथ अचल दृढ वस्र्वत , वनवश्चत पेशीयों ,
तंवत्रका एवं ग्रंवर्यों पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है !िैंे – पद्मांन , ंुखांन ,स्ववस्तकांन , वंिांन आवदी |
शािीरिक वस्र्वत – खाली पेि होने ंे पाचन विया का अनावश्यक अवतरिि भाि का न होना विंंे उिाथ का उपयोगी
कायो में वनयोिन , पाचन तंत्र को प्रयाि ववश्राम व पोषण |
पूिक ( श्वां को अन्दीि लेना ) –बाह्य वाताविण ंे वायु को नावंका ंे खीचने पि – नावंका , श्वांनली , ग्रंनी
, स्वि यन्त्र, में ेषथण व दीबाव तर्ा फेफड़े, ायफ्राम आवदी पेवशयों में वखचाव उत्त्पन्न होता है | विंंे ंंबंवित अंगो
में चेतनता , शुवि , तन्यता एवं शुि िि की आपूवतथ में वृवि होती है |
कुम्भक( वायु को िोकना ) १.अन्दीि िोकना -स्वि यन्त्र पि कंठ ंंकुचन ंे प्रयाि दीबाव ंे ंकािात्मक प्रभाव,
श्वांनली ंवहत वायुकुवपकयों में प्रयाि दीबाव ंे पेशीय क्षमता में वृवि , कु दीेि तक िोके िहने ंे अविक मात्र में
co2 औि O2 गैंों का वववनमय होने अविक मात्र में co2का वनष्कांन होने ंे उत्तम स्वास््य लाभ |
२. बाहि िोकना– बाह्य कुम्भक ंे फेफड़े में इिि उिि एकवत्रत गैंों का अविकतम उपयोग कि ंम्पूणथ ताज्य गैंों
का वनकल कि शुि आक्ंीिन को ंुगमता ंे अविक मात्र में ग्रहण किना , विंंे श्वंन तंत्र को स्वास््य लाभ
औि िोगों के मुवि के ंार् – ंार् अन्य ंमस्त तंत्रों व शािीरिक अंगो को शुि आक्ंीिन औि पोषक तत्वों ंे युि
िि की आपूवतथ कि स्वस्र् –ंबल बनता है |
िेचक ( प्रश्वां को बाहि ोड़ना )– इं विया के द्वािा भी ताज्य गैंों का वनष्कांन औि उंंे उत्त्पन्न ेषथण ,
दीबाव तर्ा गवत आवदी का भी ंम्बंवित अंगो पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है |
मुद्रा (प्राण को उपयुि वदीशा प्रदीान किना ) – अलग –अलग मुद्रा िैंे – ज्ञान,प्रणव,वचन मुद्रा आवदी ंे शिीि में
प्रवावहत िैव ववद्युत को उपयुि वदीशा वमलता है |
बन्ि (वनवश्चत क्षेत्र में प्राण को िोकना )- िालंिि बंि ंे कं ठ ( स्वि यंत्र ) , उ ् ीयान बंि ंे उदीिीय पेशी ,नावभ चि,
अमाशय, ोिी एवं बड़ी आंत , लीवि , अग्नाशय आवदी पि तर्ा मूलबंि ंे गुदीा, िननांग एवं मूलािाि चि पि प्रभाव
10. 9
पड़ता है |
उपिोि कािणों ंे ंमग्र रूप में प्राणायाम का श्वंन तंत्र ंे लेकि अन्य ंभी तंत्रों पि प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष ंकािात्मक
प्रभाव पड़ता है | विंंे आिोग्य, बल, प्रंन्नता, ंुख शांवत एवं दीीेथ आयुष्य की प्रावि होती है |
प्राणायाम का शारीररक तंत्रो पर प्रभाव
प्राणायाम
आसन –
चटाई , कु श
ध्यानात्मक
आसन-
पूरक
( श्वास को
अन्दर लेना)
कु म्भक( १.वायु
को अन्दर
रोकना )
२. बाहर
रोकना
रेचक ( प्रश्वास
को बाहर
छोड़ना )
मुद्रा (प्राण को
उपयुक्त ददशा
प्रदान करना )
बन्ध (ननश्श्चत
क्षेत्र में प्राण
को रोकना )
ध्यान
(सजगता )
11. 10
शिीि िचना एवं वियाववज्ञान की दृवष्कोण के अनुंाि भी प्राणायाम का शिीि के ंभी तंत्रों पि गहिा औि
व्यापक प्रभाव पड़ता है | विंमे मुख्यत: श्वंन तंत्र के ंार् ही ंार् , पेशीय , पाचन, तंवत्रका , अन्तुःस्रावी तंत्र
आवदी ंमस्त तंत्रों पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है | विंका ंंवक्षि वणथन वनम्नवलवखत है -
कं कालीय – पेशीय तंत्र पर प्रभाव –
प्राणायाम ंे ंमस्त पेशीय व कंकलीय तंत्र को शुि व पोषक तत्वों ंे युि िि की पयाथि आपूवतथ होती है | विंंे वे स्वस्र् एवं
ंबल बनते है परिणाम स्वरुप ंम्पूणथ शिीि स्वस्र् ,ंबल व ंुगवठत बनता |
फेफड़े , ायफ्राम एवं उदीिीय पेशीय स्वस्र् लचीला एवं मिबूत बनती है | विंंे ंम्बंवित िोगों की आशंका नहीं िहती औि िोगों का
शमन हो िाता है |
Psychophysiologic effects of Hatha Yoga on musculoskeletal and cardiopulmonary
function: a literature review
JA Raub - The Journal of Alternative & Complementary …, 2002 - online.liebertpub.com
This gly- colytic enzyme (LDH) provides energy to exercising muscle and normally increases
about twofold after long-duration submaximal exercise, indicating that yoga can have an effect
similar to endurance training. ... The effects of two pranayama yoga breathing ...
पाचन तंत्र पर प्रभाव –
प्राणायाम ंे ायफ्राम , उदीिीय पेशी , अमाशय ,लीवि , अग्न्याशय आंत्र आवदी पि दीबाव पड़ने ंे ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है |
कुम्भक औि उ ्व यान बंि ंे पाचक तंत्र के अंगो पि प्रयाि प्रभाव पड़ता है |
श्विन तंत्र पर प्रभाव –
प्राणयाम का ंवाथविक प्रभाव श्वंन तंत्र पि पड़ता है िैंा की स्पष् है की यह श्वां – प्रश्वां की विया ंे ंंबंवित ववज्ञानं ंम्मत अभ्यां है
विंंे नाक , श्वंन नली, फेफड़े, ायफ्राम ंे लेकि ंमस्त श्वंन तंत्र पि व्यापक प्रभाव ालता है | इंंे श्वंन तंत्र ंंबंवित िोगों का शमन औि
अछा ुन्न स्वास््य की प्रावि होती है |
EFFECT OF PRANAYAMA PRACTICES ON SELECTED RESPIRATORY
PARAMETERS
XM Raj - ijpehss.org
... The findings of this study showed that the respiratory parameters such as tidal volume, inspiratory
reserve volume and vital capacity has increased due to the pranayama practices. ... (2006) “Yoga
Versus Aerobic Activity: Effects on Spirometry Results ... (2008) “Effect of Alternate ...
Effect of yoga breathing exercises (pranayama) on airway reactivity in subjects with
asthma
V Singh, A Wisniewski, J Britton, A Tattersfield - The Lancet, 1990 - Elsevier
... after the exercises were done, but it seems unlikely that pranayama alone would ... Dose related
effects of salbutamol and ipratropium bromide on airway calibre and reactivity in ... The effect of
ipratropium and fenoterol on methacholine- and histamine-induced bronchoconstriction. ...
12. 11
रक्त पररिंचरण तंत्र पर प्रभाव –
िि परिंंचिण तंत्र शािीि के महत्वपूणथ अंगो में ंे एक है , प्राणायाम का व्यापक औि गहिा प्रभाव इं पि भी दीेखने को
वमलता है | विंमे िि , ह्रदीय , फेफड़े, िमवनया, वशिा ंवहत ंमस्त परिंंचिण तंत्र पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है |
Effect of yoga on cardiovascular system in subjects above 40 years
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... 1 Upadhyay et al.: Pranayama [Voluntary Regulated Yoga Breathing] and Diabetes ... The effects
of stress on glucose metabolism are mediated by a variety of "counter-regulatory" hormones that
are ... This energy mobilizing effect is of adaptive importance in a healthy organism. ...
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rate
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and fast pranayams on reaction time and cardiorespiratory variables. ... 12. 13. Singh S, Gaurav
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The short term effect of pranayama on the lung parameters
V Shankarappa, P Prashanth, A Nachal… - Journal of Clinical and …, 2012 - jcdr.net
... This study is designed to study the effects of short- term pranayama (6 weeks) on the ... of a
non-controlled study with 50 adult subjects was undertaken to study the effect of 6 ... They have
shown that the regular practice of these long-term pranayama techniques have proved to be ...
उत्िजजन तंत्र पर प्रभाव –
13. 12
प्राणायाम ंे उत्ंिथन तंत्र के अंगो िैंे वक नी, मूत्र नली , मूत्राशय आवदी को अपेक्षाकृत अविक शुि िि की आपूवतथ होती है , विंंे उंे
पयाथि पोषण – व उिाथ की प्रावि होती है ंार् ही िि आक्ंीिन युि व अपेक्षाकृत कम अशुवि युि होने ंे िि ानने अत्यविक भि नहीं नहीं
पड़ता है विंंे उत्ंिथन तंत्र ंे ंंबंवित िोगों की ंंभावना कम हो िाती है |तर्ा िोग ग्रस्त व्यवि को ंकिात्मक प्रभाव पड़ता है |
अन्तः स्रावी तंत्र पर प्रभाव –
अंत: स्रावी तंत्रों के अंतगथत वववभन्न अंत: स्रावी ग्रंवर्यों पि प्राणायाम का ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है विंंे उंंे स्राववत होने वाले
हािमोंं ंंतुवलत व वनयंवत्रत मात्रा में होने ंे स्वस्र् लाभ होता है |
Biopsychosocial Effects of Yoga in Patients with Diabetes: A Focused Review.
SP Kumar, P Adhikari… - Indian Journal of Ancient …, 2011 - search.ebscohost.com
... EFFECT ON LABORATORY TEST MEASURES Kyziom et al5 found the effects of Pranayama
and yoga compared to conventional medical therapy alone on P300 (or P3 is a ... Surprisingly though,
the authors did not find any additional beneficial effects for the yoga group. ...
Effect of regular yogic training on growth hormone and dehydroepiandrosterone sulfate
as an endocrine marker of aging
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तंसत्रका तंत्र पर प्रभाव –
1. िीवनी शवि (प्राण तत्त्व) की वृवि होने ंे तंवत्रकाओंमें आवेगों का उत्तम प्रवाह होता है !
2. ७२००० नाव यो की शुवि होती है !
3. ह्रदीय, फेफड़े , मवस्तष्क , अन्तुः स्रावी ग्रंवर् ,ंुषुम्ना वस्र्त नावड़यो की ंम्पूणथ शुवि होती है !
4. तंवत्रका ंंवेदीनशीलता में वृवि !
5. ंुि मवस्तष्कीय कोवशकाओंका िागिण, बुवि व स्मिण क्षमता वृवि- िैंे - भ्रामिी प्राणायाम का अभ्यां ंे !
6. वचंता, तनाव, अशांवत ,अवनद्रा ,वनिाशा, आत्म हीनता ंे मुवि – ंूयथ-भेदीी ंे !
7. अनुकम्पी- पिानुकं पी तंवत्रका तंत्र पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है
Effect of short-term practice of breathing exercises on autonomic functions in normal
human volunteers
GK Pal, S Velkumary - Indian Journal of Medical Research, 2004 - search.proquest.com
... This was done to exclude the effects of food and water intake on the recording. ... Autonomic
responses to breath holding and its variations following pranayama. ... 9. Shannaholf-Khalsa DS,
Kennedy B. The effect of unilateral forced nostril breathing on the heart. ...
Effect of fast and slow pranayama on perceived stress and cardiovascular
parameters in young health-care students
VK Sharma, M Trakroo, V Subramaniam… - International journal of …, 2013 - ijoy.org.in
14. 13
... 11. 12. Madanmohan, Udupa K, Bhavanani AB, Vijayalakshmi P, Surendiran A. Effect of slow
and fast pranayams on reaction time and cardiorespiratory variables. ... 12. 13. Singh S, Gaurav
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Anuloma-Viloma pranayama and anxiety and depression among the aged
PK Gupta, M Kumar, R Kumari, JM Deo - Journal of the Indian …, 2010 - medind.nic.in
... The effect of pranayama was evident from the scores from the comparison between the two
conditions namely before and after pranayama suggesting that pranayama has an important ... To
date, there have been no significant side-effects reported. ... impact of pranayama Page 5. ...
Yoga in the management of anxiety disorders
A Joshi, A De Sousa - Sri Lanka Journal of Psychiatry, 2012 - sljpsyc.sljol.info
... The effect of this technique needs to be further explored and more scientific studies ... the human
body, mind, and breath to produce structural, physiological, and psychological effects. ... hatha yoga,
which consists of an integration of asana (postures), pranayama (breathing exercise ...
लासिकीय िंस्थान ,पर प्रभाव –
1. The effect of yoga on women with secondary arm lymphoedema from breast
cancer treatment
A Loudon, T Barnett, N Piller, MA Immink… - BMC complementary …, 2012 - biomedcentral.com
... practices promote progressive physical postures (asana) with breath awareness, breathing
exercises (pranayama), meditation and ... The aim of this study is to evaluate the effects of an
eight-week ... The primary objectives are to evaluate the effect of regular yoga participation on ...
2. Using yoga in breast cancer-related lymphoedema
A Loudon, T Barnett, N Piller, A Williams… - J …, 2012 - woundsinternational.com
... A trial specifically testing the effect of deep breathing using a tai-chi style ... therapy and, in fact,
various researchers have suggested research into the effects of yoga ... Pranayama, such as alternate
nostril breathing, balances the sympathetic and para-sympathetic nervous systems ...
प्रजनन िंस्थान पर प्रभाव -
Unilateral and bilateral cryptorchidism and its effect on the testicular morphology,
histology, accessory sex organs, and sperm count in laboratory mice
S Dutta, KR Joshi, P Sengupta… - … of human reproductive …, 2013 - jhrsonline.org
... 9. Sengupta P. Health impacts of yoga and pranayama: A state-of-the-art review. ... 14. Rager K,
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N. A novel mechanism to explain the detrimental effects of left cryptorchidism on right ...
The effects of yoga in prevention of pregnancy complications in high-risk pregnancies:
a randomized controlled trial
A Rakhshani, R Nagarathna, R Mhaskar, A Mhaskar… - Preventive …, 2012 - Elsevier
... The secondary objective was to investigate the effects of yoga interventions in improving
pregnancy outcomes ... hepatic or gallbladder, or heart disease; 2) structural abnormalities in the
reproductive system; 3) hereditary ... nāḍīśuddhi pranayam (Alternate Nostrils Breathing), 2 min. ...
15. 14
Effects of yoga on utero-fetal-placental circulation in high-risk pregnancy: a
randomized controlled trial
A Rakhshani, R Nagarathna, R Mhaskar… - … in preventive medicine, 2015 - hindawi.com
... Effects of Yoga on Utero-Fetal-Placental Circulation in High-Risk Pregnancy: A Randomized ... of
practices that range from certain postures (yoga asanas), breathing exercises (pranayama), hand
gestures ... The present paper reports the effect of yoga on these parameters with the ...
अध्यतय - ५
स्नष्कर्ग
प्राणायाम हठ योग ंािना अभ्यां के अंतगथत एक बहुत ही उपयोगी एवं प्रभावशाली अभ्यां है| विंका
वणथन भाितीय द्रष्ा ऋवषयों ने शािीरिक – मानवंक स्वास््य लाभ प्रावि के ंार्- ंार् , उिाथ, ंाहं , बल एवं
ंमग्र उन्नवत के वलए आवश्यक िीवनी शवि (प्राण तत्व ) की ंमुवचत अविक मात्र में िािण औि ववस्ताि कि
वनयंत्रण स्र्ावपत किके उछाच िाि योग की अवस्र्ा तक पहुच ंकने की दृवष् ंे वकया है | यह पुणथतुः आिुवनक
16. 15
ववज्ञानं की कंौिी पि खिा उतिता है विंंे इंकी उपयोवगता औि प्रमावणकता पि कोई ंंदीेह नहीं शेष िह िाता
है |
शिीि िचना एवं वियाववज्ञान की दृवष्कोण के अनुंाि भी प्राणायाम का शिीि के ंभी तंत्रों पि गहिा औि
व्यापक प्रभाव पड़ता है | विंमे मुख्यत: श्वंन तंत्र के ंार् – ंार् , पेशीय , पाचन , तंवत्रका , अन्तुःस्रावी आवदी
ंमस्त तंत्रों पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है | इंंे ंंबंवित अब तक कई शोि कायथ अलग – अलग शोिार्ी
द्वािा ंम्पन्न हो चुके है विंका अवलोकन किने ंे तर्ा उपिोि ववणथत प्राणायाम के वियाववज्ञान को ंमझ लेने
ंे यह अत्यंत स्पष् औि दृढ प्रमावणत हो िाता है की वकं प्रकाि प्राणायाम का प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष ंमस्त शािीरिक
तंत्रों पि ंकािात्मक प्रभाव पड़ता है |
आिुवनक ंमय में वववभन्न प्रकाि के िोगों ंे ग्रस्त मानव िावत विनका मुख्य कािण प्राण (िीवनी शवि ) की कमी
होना है उंे वववभन्न प्राणायाम के अभ्यां ंे िीवनी शवि के वृवि औि ववकां कि िोगों ंे मुवि औि स्वस्र्,
ंक्षम एवं ंुख शांवत पूणथ दीीेथ िीवन ंंभव होता है |
ंार् ही ंमस्त शािीरिक तंत्रों पि प्रभाव पड़ने ंे िोग वनवािण, स्वास््य ंंिक्षण एव योग मागथ में उन्नवत ये
ंमग्र लाभ की ंहि प्रावि होती है | विंंे प्राणायाम एक वदीव्य विदीान की भावत गुणकािी | तर्ा ंमग्र योग पिवत
प्रत्यक्ष भूलोक की कामिेनु – कल्पवृक्ष वंि होता है|
ंन्दीभथ ंूची
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=09746986&AN=65163732&h=llVontRhNzAnk3sy7z6jSfIXhZ4B5ROVj1%2BpGT8Qog8xiDyBee7S4QTObg
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