10. सिंपवत्त क
े प्रकार
• बृ स्त्पति व कात्यायन : स्त्थावर (भूलर्, घर) एविं जिंगर्
• याज्ञवल्क : भू, तनबिंि+ द्रव्य (चल सिंपवत्त), अन्य
• बृ स्त्पति : द्रव्य =चल + अचल सिंपवत्त
• प्राचीन ववधि : सिंयु्ि क
ु ल सिंपवत्त (अप्रतिबिंि दाय) एविं पृथक सिंपवत्त
• शौयम िन : कात्यायन-जो राजा/स्त्वार्ी द्वारा क्रकसी सैतनक/नौकर को
प्राणों की बाजी लगा कर शूरिा हदखाने पर पुरस्त्कार रूप र्े प्राप्ि
• ध्वजाहृि : जो प्राणों की बाजी लगाकर युद्ि र्े/शरु को भगा कर प्राप्ि
• भायाम िन : वववा क
े सर्य बिंिुओ द्वारा दी गई सिंपवत्त
• ववद्या िन : ववद्या या ज्ञान से स्त्व अजजमि सिंपवत्त
• याज्य : र्िंहदरों/पुरोह िी से प्राप्ि दान सिंपवत्त
• योगक्षेर् : यज्ञ कर्म से प्राप्ि सिंपवत्त/जीववका
11. सिंपवत्त क
े प्रकार
• पृथक सिंपवत्त:
1. जो भाई चाचा से प्राप्ि
2. जो पैिृक चल सिंपवत्त से वपिा द्वारा स्त्ने वश दान रूप र्ें प्राप्ि
3. पृथक सिंपवत्त से वपिा द्वारा हदया दान
4. वववा क
े सर्य बिंिुओ द्वारा दी गई सिंपवत्त (भायाम िन, वैवाह क)
5. क
ु ल से चली गई सिंपवत्त जो व्यज्ि क
े अपने प्रयास से दूसरे से
पुनः प्राप्ि
6. ववद्या या ज्ञान से स्त्व अजजमि सिंपवत्त (ववद्या िन)
13. दाय : पररभाषा
• ऋग्वेद : दाय से अथम भाग या पुरस्त्कार से ै
• िैज त्तररय सिंह िा व ब्राह्र्ण साह य : सिंपवत्त, िन क
े अथम र्े प्रयु्ि
• लर्िाक्षरा: व सम्जपवत्त जजस पर उसक
े स्त्वार्ी से सिंबिंि र्ार से ी सम्जबिंधिि व्यज्ि का स्त्वालर्त्व स्त्थावपि ो
जाए – जैसे पुर का अधिकार वपिा से उसक
े सम्जबन्ि क
े आिार पर
• दायभाग: दाय दा िािु से उत्पन्न –जो हदया जाए वो दाय (दान)
दाय क
े दो आवश्यक आिार:
१ दािा क
े स्त्वित्व की तनवृवत्त
२ गृ णकिाम क
े स्त्वित्व की उत्पवत्त
एक क
े अभाव र्ें दूसरे का सृजन न ी
वपिा क
े र्रने पर ी तनवृवत्त सम्जभव
14. दाय क
े प्रकार : लर्िाक्षरा क
े अनुसार
अप्रतिबंधिि दाय /समांशी ददाय द द सप्रतिबंधिि दाय
पररवार र्ें जन्र् लेने र्ार से ी सम्जपवत्त क
े
उत्तराधिकारी = जन्र्स्त्त्ववाद
विंशपरिंपरा क
े वैि उत्तराधिकाररयों क
े
अभाव र्ें ी प्राप्ि = उपरर्स्त्त्ववाद
पुर, प्रपुर, प्रपौर चाचा, भाई, भिीजा, र्ार्ा, नाना, की
सम्जपवत्त प्राप्ि
दाय ग्र ण र्ें क्रकसी प्रकार का प्रतिबिंि न ी
– विंशपरिंपरा अनुसार ग्र ण
ये प्राप्ि सम्जपवत्त प्राप्िकिाम की पूणमिः
पृथक सम्जपवत्त
15. दाय क
े प्रकार: दायभाग क
े अनुसार
• सभी प्रकार का दाय सप्रतिबिंधिि दाय ै ्यूँक्रक व
पूवम स्त्वार्ी क
े ना र ने पर ी अन्य को प्राप्ि ोिा ै
16. लर्िक्षरा ववभाग ववधि: ववलशष्ट लक्षण
1. स्त्वालर्त्व की एकिा : सभी स भागी एक साथ स्त्वार्ी
2. भोग व प्राजप्ि की एकिा :सभी को सिंयु्ि सिंपवत्त पर अधिकार
3. कात्यायन : ववभाजन क
े सर्य आय-व्यय का ब्योरा न ीिं पूछा जा सकिा ै
4. स भागी की र्ृत्यु पर उसका भाग सर्ाप्ि ो जािा ै और अन्य को प्राप्ि
5. प्रत्येक स भागी ववभाजन की र्ािंग कर सकिा ै
6. वपिा को व्यवस्त्थापक क
े ववलशष्ट अधिकार प्राप्ि जो क्रकसी स भागी को
न ीिं
7. लर्िाक्षरा : त्रबना अन्य स भाधगयों की स र्ति क
े अववभाजजि भाग का
दान, त्रबिी न ीिं कर सकिा
8. जस्त्रयों को स भाधगिा न ीिं
9. दत्तक पुर स भाधगिा का सदस्त्य
17. दायभाग ववभाग ववधि: ववलशष्ट लक्षण
1. स भागीयों को वपिा क
े जीवन काल र्े ववभाजन की र्ािंग का
अधिकार न ीिं
2. वपिा को सिंपवत्त क
े व्यय, त्रबिी, दान का पूणम अधिकार
3. जस्त्रयों को भी स भाधगिा
4. स भागी की र्ृत्यु पर अन्य स भाधगयों को उसका भाग प्राप्ि न ीिं
वरन र्ृिक की वविवा या पुरी को स भाधगिा की सदस्त्यिा प्राप्ि
18. ववभाजन ववधि एविं भाग तनणमय
• ववभाजन से पूवम भाई अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए व्यय क
े ललए व्यवस्त्था
अवश्य करे
• कौहटल्य, ववष्णु, बृ स्त्पति : भाई अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए व्यय क
े
ललए व्यवस्त्था करे
• र्नु, कात्यायन, याज्ञवल््य : भाई अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए व्यय क
े
ललए 1/4 भाग देना चाह ए
• लर्िक्षरा : अवववाह ि कन्या को वववा क
े ललए उिना ी लर्लना चाह ए
जजिना उसे पुरुष ोने पर लर्ला ोिा
• दाय भाग : भाई को अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए यहद सिंपवत्त कर् ै िो
1/4 भाग और अगर पयामप्ि ै िो क
े वल आवश्यक व्यय देना चाह ए
19. ववभाजन एविं भाग तनणमय से पूवम व्यवस्त्थाएँ
वैवाह क व्ययों की व्यवस्त्था
क
ु ल ऋणों/ वपिा द्वारा ललए ऋणों का भुगिान
आधिि नाररयों की व्यवस्त्था
दोषी स भाधगयों की व्यवस्त्था
वपिा द्वारा हदए स्त्ने दानों की व्यवस्त्था
20. ववभाग/उत्तराधिकार क
े तनयर्
• लर्िाक्षरा : 1. क
े वल पुरुष ी सर्ािंशी (दायान्श ग्र ण र्ें प्रतिबिंि न ी)
2. प्रत्येक प्रकार की सम्जपवत्त पर अधिकार जन्र् से
3. िीसरी पीढी िक ी सर्ािंशी : आिार =वपण्ड दान
उदा रण-
च को पैिृक सम्जपवत्त र्ें ह स्त्सा न ी।
ख, ग, घ क
े र्रने पर भी न ी।
क
े वल क क
े र्रने पे ख से उत्तराधिकार
• दायभाग : 1. जस्त्रयों को भी सर्ािंशी र्ाना ै।
2. र्रणोपरािंि ी स्त्वत्व उत्पन
क द
पििा
ख द
िुत्र
ग द
िौत्र
घ द
प्रिौत्र
च द
प्रिौत्र
21. उत्तराधिकार/ववभाग क
े तनयर्
लर्िाक्षरा: 1. सर्ािंशी जब चा े िब अपना अधिकार प्राप्ि कर सकिा ै
2.पैिृक सम्जपवत्त का ववशेष पररजस्त्थतियों र्ें ी अप ार
3.पृथक सम्जपवत्त पर वपिा का पूणम स्त्वालर्त्व
4.उस पर इच्छानुसार ववतनयोग (वविय/दान)की छ
ू ट
5.वप्रयनाथ सेन: वपिा की पैिृक व पृथक सम्जपवत्त र्ें क
े वल चल
सम्जपवत्त क
े अप ार का अधिकार
• दायभाग: 1.पैिृक सम्जपवत्त पर पुर का कोई अधिकार न ी
2.क
े वल वपिा क
े र्रणोपरािंि ी सम्जपवत्त र्ें अधिकार र्ाँग
सकिा ै
22. उत्तराधिकार क
े तनयर्
➢र्नु : ववभाजन एक बार ोिा ै
• अपवाद :
1. ववभाजन क
े उपरािंि पुरोत्पवत्त पर पुनः ववभाजन
2. देश छो़ि कर गए व्यज्ि क
े उत्तराधिकारी क
े लौट आने पर
3. छल से तछपी सम्जपवत्त क
े उजागर ोने पर
➢पुरुष शाखा से सिंबिंधिि गोरज सदैव स्त्री शाखा से सिंबिंधिि बिंिुओ से
रर्थ रण क
े ललए िेष्ठ
• अपवाद :
दायाद िर् र्े दौह र को पुरुष शाखा से सिंबिंधिि ोने वाले गोरज से
ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै
23. उत्तराधिकार क
े तनयर्
➢गोरज एविं सर्ानोदक, बिंिुओ से प ले क
े दायाद
• अपवाद :
दायाद िर् र्े दौह र को अन्य गोरज बिंिुओ से ब ुि प ले स्त्थान हदया
गया ै
➢सवपिंडिा साि पीढी िक
• अपवाद: बिंिुओ की सवपिंडिा क
े वल 5 पीढी िक
24. ➢ लर्िाक्षरा : सिंयु्ि सिंपवत्त ववभाजन वपिृि ोिा ै, र्ुिंडश: न ीिं
(अपवाद : दौह रों र्े परस्त्पर ववभाग र्ुिंडश: ोिा ै वपिृि न ीिं)
क द
(मृि)
90 रुिये
ख द
(30 रुिये)
ग द
(मृि)
ग द1
(15 रुिये)
ग द2
(15 रुिये)
घ द
(मृि)
छ द
(मृि)
छ द1
10 (रुिये)
छ द2
10(रुिये)
छ द3
10 (रुिये)
च द
(मृि)
ज द
(मृि)
झ द
(मृि)
ि
25. उत्तराधिकार क
े ललए अयोग्य व्यज्ि = अनिंश / दायान म
• शारीररक एविं र्ानलसक रूप से अयोग्य व्यज्ि
• असाध्य रोगों से ग्रस्त्ि व्यज्ि
• चाररत्ररक दोषों से यु्ि व्यज्ि : दुराचारी, पतिि
• जाति से बह ष्कृ ि व्यज्ि
• पुर उत्पन्न करने र्े असर्थम व्यज्ि
• सन्यास ग्र ण करने वाले व्यज्ि
• वपिृ द्वेषी (वपिृ िंिा/ वपिा को वपिंड ना देने वाला)
• क
ु छ दशाओिं र्े जस्त्रयाँ
• अनैतिक ढिंग से क
ु लसिंपवत्त का व्यय करने पर ब़िे पुर को वपिा द्वारा दायािंश से विंधचि
क्रकया जा सकिा ै
पी. वी. काणे : ऐसा इसललए क्रकया गया ्यूँक्रक ये लोग िालर्मक कायम न ीिं कर सकिे और
सिंपवत्त और उसक
े साथ िालर्मक उपयोग का सिंबिंि अटूट र्ाना जािा ै
26. उत्तराधिकार क
े ललए अयोग्य व्यज्ि क
े अधिकार
1. स्त्र्ृति ग्रिंथ : जजन् े दोषों क
े कारण दायािंश न ीिं लर्लिा उन् े क
ु ल सिंपवत्त से
जीवन भर जीववका क
े सािन प्राप्ि ोिे ै
2. याज्ञवल््य: अयोग्य व्यज्ि क
े वववा पर उसकी पत्नी को जो सदाचाररणी ै,
जीववका लर्लिी ै
3. क
ु छ स्त्र्ृतियों ने पतिि एविं उसक
े पुर को भी जीववका से विंधचि कर हदया ै
4. यहद ववभाजन क
े सर्य व्यज्ि दोष र्ु्ि ो और दायािंश प्राप्ि ोने क
े बाद वो
दोषी ो जाए िो उसे जो लर्ला ै व छीन न ीिं जा सकिा
27. ववभाजन ववधि का उल्लिंघन
• ऐिरेय ब्राह्र्ण : ववभाजन ववधि क
े उल्लिंघन पर दिंड अवश्य
• र्नु : यहद ब़िा पुर छोटे भाइयों को भाग से विंधचि करिा ै िो उसे
उसका ववलशष्ट भाग न ीिं लर्लिा और व राजा द्वारा दिंडडि ोिा ै
• दाय भाग : सिंयु्ि सिंपवत्त को तछपाना चोरी न ीिं ै
• लर्िाक्षरा : ऐसा कर्म चोरी क
े सर्ान ी
31. लर्िाक्षरा का दायाद िर्
1. पुर, पौर, प्रपौर
2. वविवा
3. पुरी
4. दौह र
5. वपिरौ
6. भाई
7. भिीजा
8. भिीजा का पुर
9. गोरज
10. सर्ानोदक
11. बिंिु
12. गुरु
13. लशष्य
14. स पाठी
15. राजा
एक दक
े दअभाव दमें ददूसरा ददायाद दबनिा दहै द
बद्ि द
क्रम द
अबद्ि द द
क्रम द
32. लर्िाक्षरा का दायाद िर् : पुर
• पुर से िीन पीढी अथामि प्रपौर िक का बोि
• एक वपिा क
े सभी पुर सभी सिंपवत्त र्े बराबर का भाग पािे ै
• ववभाजन र्ुिंडश: (जजिने जीववि) ना ो कर वपिृि: ोिा ै
33. लर्िाक्षरा का दायाद िर् एविं ववभाजन : उदा रण
क द
(मृि)
90 रुिये
ख द
(30 रुिये)
ग द
(मृि)
ग द1
(15 रुिये)
ग द2
(15 रुिये)
घ द
(मृि)
छ द
(मृि)
छ द1
10 (रुिये)
छ द2
10(रुिये)
छ द3
10 (रुिये)
च द
(मृि)
ज द
(मृि)
झ द
(मृि)
ि
34. लर्िाक्षरा का दायाद िर् : वविवा
• वविवा क
े अधिकार सीलर्ि एविं र्िभेद यु्ि
• याज्ञवल््य, बृ स्त्पति, कात्यायन : वविवा को दायाद घोवषि क्रकया
• नारद : ववरोि
• लर्िाक्षरा : वविवा को पुर क
े बाद दायाद र्े प्रथर् स्त्थान पर अधिकार
अत्यिंि सीलर्ि। क
े वल सिंपवत्त का उपभोग। दान, वविय न ीिं
35. लर्िाक्षरा का दायाद िर् : पुरी
• पुत्ररयों क
े अधिकार सीलर्ि
• याज्ञवल््य, नारद, बृ स्त्पति, कात्यायन, कौहटल्य : वविवा क
े बाद पुरी का
अधिकार
• र्नु: य व्यवस्त्था सभी पुत्ररयों क
े ललए न ीिं क
े वल पुरीका (पुर क
े रूप र्े
तनयु्ि पुरी) क
े ललए ी
• लर्िाक्षरा: सभी पुत्ररयों क
े ललए र्ान्य
• कात्यायन: उत्तराधिकार र्े अवववाह ि कन्या को वववाह ि की अपेक्षा
वरीयिा
• दायभाग : पुरविी/ सिंभाववि पुरा को प्राथलर्किा
36. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: दौह र
• यद्यवप लभन्न गोर का क्रकन्िु दायाद िर् र्े दौह र को अन्य गोरज
बिंिुओ से ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै
• शास्त्रकार : पुर क
े अभाव र्ें दौह र नाना का वपिंड दािा ोिा ै
• बृ स्त्पति : दौह र कन्या क
े बाद दायाद
• दौह र अपने नाना की सिंपवत्त पर पूणम अधिकार पािा ै परिंिु उसक
े
र्रने पर उस सिंपवत्त क
े दायाद उसक
े अपने उत्तराधिकारी ोिे ै नाना
क
े उत्तराधिकारी न ीिं
• दौह रों र्े परस्त्पर ववभाग र्ुिंडश: ोिा ै वपिृि न ीिं
37. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: वपिरौ
• वपिरौ = र्ािा-वपिा
• र्ािा र्ें ववर्ािा की गणना न ीिं
• दौह र क
े अभाव र्ें ‘र्ािा वपिा’ पैिृक सिंपवत्त क
े रर्थ र
• कौन प्रथर्?
• र्नु, दायभाग : वपिा प्रथर्
• बृ स्त्पति, लर्िाक्षरा : र्ािा प्रथर्
38. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: भाई-भिीजे
• लर्िाक्षरा : र्ािा वपिा क
े बाद क
े दायाद
• लर्िाक्षरा – दायभाग : भाइयों र्ें सोदर भाइयों को लभननोदर भाइयों
की िुलना र्े वरीयिा
39. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: गोरज
• गोरज = एक गोर र्ें उत्पन्न लोग
• यथा : वपिा,भाई, भिीजे, वपिा क
े र्ािा वपिा, ब न , चाचा, चाचा
का पौर, प्रवपिर् , वपिार् का भाई, वपिार् क
े भाई का पुर,
वपिार् क
े भाई का पौर
•
• लर्िक्षरा : गोरज, र्ृि व्यज्ि क
े 6 पीढी ऊपर, 6 पीढी नीचे क
े
सिंबिंिी
• अबद्ि िर् :उत्तराधिकार का िर् तनजश्चि न ीिं
40. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: सर्ानोदक
• लर्िाक्षरा : र्ृि व्यज्ि की 7 वी से 14वी पीढी िक क
े व्यज्ि =
सर्ानोदक = दायाद
• काणे : सर्ानोदक व व्यज्ि जो क्रकसी एक व्यज्ि को जल देिे ै/ग्र ण
करिे ै
• लर्िाक्षरा : सर्ानोदक की सिंख्या = 147
•
• र्नु : सर्ानोदक की सीर्ा िब िक जब िक की क
ु ल र्े जन्र् एविं नार्
ज्ञाि
• अबद्ि िर् :उत्तराधिकार का िर् तनजश्चि न ीिं
41. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: बिंिु
• गोरज और सर्ानोदक एक ी गोर क
े सवपिंड
• बिंिु : लभन्न गोर क
े सवपिंड
• पी.वी. काणे : गोरज और सर्ानोदक र्ृि पुरुष क
े पुरुष सिंबिंधियों से
सम्जबद्ि, बिंिु उसक
े स्त्री सिंबिंधियों से सम्जबद्ि
• गोरज और सर्ानोदककी सवपिंडिा साि पीढी िक, बिंिुओ की सवपिंडिा
क
े वल 5 पीढी िक
बौिायन, लर्िाक्षरा : िीन प्रकार क
े बिंिु –
1. आत्र् बिंिु : वपिा की ब न , र्ािा की ब न ,र्ािा क
े भाई क
े पुर
2. वपिृ बिंिु : वपिा की बुआ, वपिा की र्ौसी, वपिा क
े र्ार्ा क
े पुर
3. र्ािृ बिंिु : र्ािा की बुआ, र्ािा की र्ौसी, र्ािा क
े र्ार्ा क
े पुर
42. दायभाग का दायाद िर्:
• लर्िाक्षरा क
े सर्ान ी परिंिु क
ु छ अिंिर
• दायाद क
े बद्ि िर् र्ें : वपिा का स्त्थान र्ािा से प ले
वववाह ि पुत्ररयों र्ें पुरविी को वरीयिा
रर्थ रण क
े सर्य कन्या का साध्वी ोना आवश्यक
• दायाद क
े अबद्ि िर् र्ें: गोरज से प ले सवपिंड का उल्लेख
सवपिंड: अपने गोर की क
े वल िीन पीढी िक
सक
ु ल्य : चौथी से छठी पीढी िक क
े पूवमज/विंशज
सक
ु ल्य, सर्ानोदक से पूवम, द्वविीय स्त्थान पर
43. उपसिं ार
• रर्थ एविं उत्तराधिकार की परिंपरा अत्यिंि प्राचीन
• रर्थ एविं उत्तराधिकार क
े ववववि पक्षों पर ग न धचिंिन अन्वेषण
• व्याव ाररक तनयर् व्यवस्त्था
• ववस्त्िृि एविं ववषाद व्याख्या
• काल एविं पररजस्त्थति अनुसार पररविमन दृजष्टगि